शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

चित्रकार

 

 

चित्रकार के चित्र की


खामियोँ को बिन्‍दुओँ से

उजागर करते सब,

काश ! कोई एक बढकर

सुधार देता चित्र,

गुमनाम जिन्‍दगी के

अंधेरे में

डूबने से पहले

बच जाता

एक चित्रकार।

वक्त

वक्त के इस समंदर में

 बांध लेना वक्त को

ये मुमकिन नहीं !

पर कोशिशे लाख होती है

वक्त जो ठहरता नहीं.!!



शनिवार, 8 सितंबर 2012

प्रवासी साहित्यकार: सुरेश चन्द्र शुक्ला "शरद आलोक"

 साहित्याकर समाज का प्राण होता है वह अपनी सांसारिक अनुभूतियो को मार्मिक अभिव्यक्ति देते हुए लोकभावनाओ का प्रतिनिधित्व करता है । समाज के वातावरण की नीव पर ही साहित्य का प्रसाद खड़ा होता है । जिस समांज की जैसी परिस्थतिया होगी वैसा ही उसका साहित्य होगा । नार्वे में ओस्लो विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' अपनी सृजनात्मक शैली से नित्य नवीन अनुभूतियों को संजोते और सँवारते हए देशी और विदेशी पाठकों को राससिक्त कर रहे है । २५ वर्ष पूर्व लखनऊ से उड़कर नार्वे पहुँच शुक्ल जी ने अपनी रचनात्मक प्रतिभा के बूते पर नोर्वे जैसे हिन्दी के लिए विपरीत वातावरण वाले देश में भी हिन्दी - नॉरवेजीय द्वैभाषिक पत्रिका 'स्पाइल दर्पण ' का प्रकाशन शुरू किया । उनके द्वारा प्रवाहित साहित्य संगम की यह धारा गंगा यमुना के पवित्र संगम की तरह अवाध गति से बहती हुयी हजारों पाठको को अपनी अभिव्यक्ति से अभिसिंचित कर रही है ।
'शरद आलोक' की कहानी संग्रह 'अर्धरात्री का सूरज" जंहा एक ओर नार्वे की धरती  पर भिन्न विषय वस्तु,नए कथानक ,नए परिवेश से हिन्दी कहानी के आकर्षण को बढ़ा रह है वंही उनके द्वारा उर्दू में लिखित 'तारुफी ख़त' अन्य भारतीय  भाषाओं के प्रति उनकी ललक ओर रुझान को दर्शाता है  | सुखद ओर आनंददायक लोक में  विचरण  करने के लिए कल्पना ह़ी  कवि  का साधन होती है | इसी परिपेक्ष में कवि द्वारा रचित वेदना, नंगे पांव का सुख,दीप जो बुझते नहीं, नीड में फंसे पंख, सम्भावनाओ की तलाश , गंगा से ग्लोमा के संगम में चिंतन ,विषयवस्तु,भाषा, शिल्प ओर प्रस्तुतीकरण के प्रयोग परलक्षित हो रहे हैं | 
कल्पना की सुधा से सिक्त ;शरद आलोक' के गीत,कहानी,मानव के व्यथित ह्रदय को शांति प्रदान करते है | सुरेश चन्द्र शुक्ल ने विदेश में अपने लम्बे प्रवास के बावजूद हिन्दी के अगाध प्रेम ओर अपनी माटी की गंध पर आंच तक नहीं आने दिया | परदेश में रहते हुए सामाजिक पीड़ा  ओर स्वदेश प्रेम को उकेरती इनकी कहानी 'मंजिल के करीब' के अंश :
 अक्सर नार्वेजियन समाचार पत्रों में निरी  बेहूदी बाते छपती है | तीसरी दुनिया के देशों को समाचार पत्रों में स्थान काम मिलता है | भारत -पाकिस्तान -बांग्लादेश के बारें में पूछो ह़ी नहीं  | एक दिन एक समाचार पत्र ने प्रकाशित किया - तीसरी  दुनिया की प्रवासी औरते चूहे की बच्चा पैदा करती हैं|  कितनी शर्म की बात है शायद ह़ी कोई प्रवासी किसी नार्वेजीय के बारें में ऐसा सोचता हो |  कभी -कभी मन में आता है कि अपने वतन  भाग चलो | अपने देश में काहे जैसा हो सुकून है शांती है | अपने देश की मिट्टी में जो सोंधापन  है जो खुसबू  है वह यंहा नहीं है | यंहा आसमान भी मानो हमें  निगलना चाहता है |



 

 

 

 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 

 

हिन्दी ब्लागर्स

हिन्दी चिठ्ठाजगत बजरिये ब्लागिंग हर आवाम की आवाज है,जो ना तो न किसी प्रकाशक का मोह्ताज है न किसी स्पांसर का।आज हिन्दी ब्लागिंग के जरिये हिन्दी का परचम विश्वजाल पर लहरा रहा है। इसकी उपलब्धियों से प्रभावित होकर महात्मा गांधी अन्त्तराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय ने इलाहबाद में ब्लागरस मीट का आयोजन कर हिन्दी चिठ्ठकारी को पह्चानने में अग्रिम भूमिका निभाई है। देश विदेश से अनेको चिठ्ठा प्रेमियों ने अपने अनुभवों और नयी तकनीकी से लोगो को रु-बरू कराया | विदेशी धरती पर हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में प्रवासी भारतीयों ब्लागर्स के योगदान और उनकी सेवाओ से हिंदी जगत आह्लादित है | रोजी रोटी के लिए अपनी माटी से हजारो मील दूर रहते हुए भी उन्होंने अपनी संस्कृति,संस्कार पर कभी आंच नहीं आने दी, अपनी भाषा अपने वतन को हमेशा सर्वोपरि रखा,काबिलेतारीफ है आज भी उनके दिलो में देश की वही जीती जागती तश्वीर जो शब्दों में ढल कर बजरिये ब्लागस  चारो ओर अपनी सुगंध से सुवासित कर रही | उनके इस भागीरथी प्रयास के लिए हम सब तहे दिल से शुक्रगुजार है |

रविवार, 1 नवंबर 2009

शब्दों का सफ़रनामा

शब्दों का सफर नामा ......ताजमल्लाहन' एक ऐताहासिक स्थल जो गवाह और साक्षी है एक हैरतंगेज ......दास्ताँ की .......
सन १२९६ ईस्वी , दिल्ली सल्तनत  का बादशाह जलालुद्दीन खिलजी जिसका  भतीजा ओर दामाद कड़ा का सूबेदार अलाउद्दीन खिलजी के देवगिरी   विजय अभियान से शुरू हुयी इस गाँव के बजूद की दास्तान......... फ़तेह की खुशी से लबरेज सूबेदार अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत की बादशाहत का ख्वाब अपने दिल में पाल चुका था |  मौके  की तलाश में था |  इधर बादशाह जलालुद्दीन खिलजी अपने  खिलाफ षडयंत्रो से बेखबर जज्बातों को काबू में न रख सका और अलाउद्दीन खिलजी के इस्तेकबाल के लिए अपने काफिले के साथ दिल्ली से कड़ा आ धमका | अलाउद्दीन ने मानिकपुर में गंगा नदी के बीच मुलाकात मुकरर की जंहा जीत में हासिल तमाम असबाव सूबेदार को बादशाह को नजर करना था | बादशाह जलालुद्दीन खिलजी  नावों द्वारा गंगा नदी में पहुंच गया | बादशाह के  गले मिलते ह़ी अलाउद्दीन के  सरदारों ने तलवार से बादशाह की गर्दन धड से उड़ा  दिया | उसी के साथ बादशाह के सिर पर बंधा 'ताज' भी गंगा के गहरे पानी में गिर गया | अब बिना 'ताज' के दिल्ली सल्तनत के  नए बादशाह की ताजपोशी कैसे ? ऐसी दुरूह  स्थिति में मल्लाहों ने बड़ी मशक्कत ओर मेहनत से 'ताज' खोजने के काम को अंजाम दिया | अलाउद्दीन खिलजी  ने अपनी इस खुशी का इज़हार करते हुए फरमाना जारी किया गंगा के मल्लाह आज दिन भर में   जहाँ तक घूम सके वो पूरा भू भाग मल्लाहों को इनाम में दे दिया जाए | मल्लाहो  ने लगभग १५ किलोमीटर के दायरे को अपने क़दमों से नाप पाए | शाही फरमान के मुताबिक उन्हें उस जगह का मालिकाना हक़ हासिल हुआ | और एक नया ऐताहासिक स्थल "ताजमल्लाहन" आबाद हो गया | जो आगे चलकर बाकायदा सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हुआ |
जलालुद्दीन को कड़ा में ह़ी दफनाया गया जहाँ उनकी मजार आज भी उस ऐतहासिक घटना की गवाह है | खिलजी वंश को बुलंदियों के आसमान तक पहुँचाने वाला शासक अलाउद्दीन खिलजी एक सख्त शासक था आवाम की बेहतरी के लिए उसने कुछ खास बातो पर ताकीद लगा रखी थी. उसके शासन काल में बाजार व्यवस्था काबिले तारीफ थी | उसकी इस  व्यवस्था का खास मकसद था कि हम जितना पगार अपने सैनिको को देते हैं उतने में ह़ी उनका और उनके परिवार की दाल रोटी चल जाये | मंहगाई पर उसका कड़ा नियंत्रण था |  सभी दुकानदारो को दुकान में सामान की मात्रा ओर कीमत लिखकर टांगने का हुक्म था, घटतौली पर कड़ी सजा थी  | उनकी   निगाहबनी के लिए बादशाह के नुमाइंदे लगे हुए थे | और घटतौली की सजा भी बहुत ह़ी कड़ी थी | जितनी घटतौली उतना दुकानदार के शरीर का मांस निकालने का शाही फरमान था |  राहगीरों के साथ लूटपाट की घटना को रोकने के लिए उसने अपने तालुकेदारो को ताकीद थी |.जिस तालुकेदार के इलाके में घटना होगी उसका जिम्मेदार तालुकेदार होगा, लिहाजा  तालुकेदार खुद चाक चौबंद रहते थे.


सौजन्य : श्री प्रकाश नारायण शुक्ल एम् . ए  . एमेड़