रविवार, 1 नवंबर 2009

शब्दों का सफ़रनामा

शब्दों का सफर नामा ......ताजमल्लाहन' एक ऐताहासिक स्थल जो गवाह और साक्षी है एक हैरतंगेज ......दास्ताँ की .......
सन १२९६ ईस्वी , दिल्ली सल्तनत  का बादशाह जलालुद्दीन खिलजी जिसका  भतीजा ओर दामाद कड़ा का सूबेदार अलाउद्दीन खिलजी के देवगिरी   विजय अभियान से शुरू हुयी इस गाँव के बजूद की दास्तान......... फ़तेह की खुशी से लबरेज सूबेदार अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत की बादशाहत का ख्वाब अपने दिल में पाल चुका था |  मौके  की तलाश में था |  इधर बादशाह जलालुद्दीन खिलजी अपने  खिलाफ षडयंत्रो से बेखबर जज्बातों को काबू में न रख सका और अलाउद्दीन खिलजी के इस्तेकबाल के लिए अपने काफिले के साथ दिल्ली से कड़ा आ धमका | अलाउद्दीन ने मानिकपुर में गंगा नदी के बीच मुलाकात मुकरर की जंहा जीत में हासिल तमाम असबाव सूबेदार को बादशाह को नजर करना था | बादशाह जलालुद्दीन खिलजी  नावों द्वारा गंगा नदी में पहुंच गया | बादशाह के  गले मिलते ह़ी अलाउद्दीन के  सरदारों ने तलवार से बादशाह की गर्दन धड से उड़ा  दिया | उसी के साथ बादशाह के सिर पर बंधा 'ताज' भी गंगा के गहरे पानी में गिर गया | अब बिना 'ताज' के दिल्ली सल्तनत के  नए बादशाह की ताजपोशी कैसे ? ऐसी दुरूह  स्थिति में मल्लाहों ने बड़ी मशक्कत ओर मेहनत से 'ताज' खोजने के काम को अंजाम दिया | अलाउद्दीन खिलजी  ने अपनी इस खुशी का इज़हार करते हुए फरमाना जारी किया गंगा के मल्लाह आज दिन भर में   जहाँ तक घूम सके वो पूरा भू भाग मल्लाहों को इनाम में दे दिया जाए | मल्लाहो  ने लगभग १५ किलोमीटर के दायरे को अपने क़दमों से नाप पाए | शाही फरमान के मुताबिक उन्हें उस जगह का मालिकाना हक़ हासिल हुआ | और एक नया ऐताहासिक स्थल "ताजमल्लाहन" आबाद हो गया | जो आगे चलकर बाकायदा सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हुआ |
जलालुद्दीन को कड़ा में ह़ी दफनाया गया जहाँ उनकी मजार आज भी उस ऐतहासिक घटना की गवाह है | खिलजी वंश को बुलंदियों के आसमान तक पहुँचाने वाला शासक अलाउद्दीन खिलजी एक सख्त शासक था आवाम की बेहतरी के लिए उसने कुछ खास बातो पर ताकीद लगा रखी थी. उसके शासन काल में बाजार व्यवस्था काबिले तारीफ थी | उसकी इस  व्यवस्था का खास मकसद था कि हम जितना पगार अपने सैनिको को देते हैं उतने में ह़ी उनका और उनके परिवार की दाल रोटी चल जाये | मंहगाई पर उसका कड़ा नियंत्रण था |  सभी दुकानदारो को दुकान में सामान की मात्रा ओर कीमत लिखकर टांगने का हुक्म था, घटतौली पर कड़ी सजा थी  | उनकी   निगाहबनी के लिए बादशाह के नुमाइंदे लगे हुए थे | और घटतौली की सजा भी बहुत ह़ी कड़ी थी | जितनी घटतौली उतना दुकानदार के शरीर का मांस निकालने का शाही फरमान था |  राहगीरों के साथ लूटपाट की घटना को रोकने के लिए उसने अपने तालुकेदारो को ताकीद थी |.जिस तालुकेदार के इलाके में घटना होगी उसका जिम्मेदार तालुकेदार होगा, लिहाजा  तालुकेदार खुद चाक चौबंद रहते थे.


सौजन्य : श्री प्रकाश नारायण शुक्ल एम् . ए  . एमेड़

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

are wah apne apne is blog dwara aise itihas se parichy karaya jise hum log jante bhee nahi the badhayee.
Anup Tripathi